My Mother at Sixty-six Summary Class 12 English
My Mother at Sixty-six Summary in English
The poet was driving from her parent’s home to the Cochin airport last Friday morning. Her mother was sitting beside her. She was sixty six years old. The old lady was dozing. Her mouth remained open. Her face looked pale and faded. It was grey like ash. It looked lifeless like a corpse (dead body).
The lifeless and faded face of her mother pained her heart. The old lady seemed to be lost in her own thoughts. The poet turned away her attention from her mother and looked outside. The world outside was full of life and activity. The young trees seemed running fast. The children looked happy while moving out of their homes.
When they were at the airport, they had to undergo a security check. The poet was standing a few yards away from her mother. She looked again at her old mother. She felt pained to look at the colourless, lifeless and pale face of her mother. Her face looked faded like the late winter’s moon which had lost its shine and strength. This aroused the old familiar ache in the poet’s heart. Her childhood fear overpowered her again. However, she controlled herself. She appeared to be normal. She scattered smiles on her face while saying good bye to her mother. She wished to see her old Amma again.
My Mother at Sixty-six Summary in Hindi
पिछले शुक्रवार को सवेरे कवयित्री अपने माता-पिता के घर से कोचीन हवाई अड्डे की ओर गाड़ी चलाती हुई जा रही थी। उसकी माँ उसके पास बैठी थी। वह 66 वर्ष की थी। वृद्धा उँघ रही थी। उसका मुँह खुला रह गया था। उसका चेहरा पीला तथा मुझीया हुआ दिखता था और राख जैसा विवर्ण-धूसर लगता था। यह एक लाश के समान निर्जीव प्रतीत होता था।
उसकी माँ का निर्जीव तथा विवर्ण चेहरा उसके हृदय को दु:ख पहुँचाता था। वृद्धा अपने ही विचारों में खोयी हुई प्रतीत होती थी। कवयित्री ने अपना ध्यान अपनी माँ से हटाया तथा बाहर की ओर देखा। बाहर का संसार जीवन से भरपूर तथा गतिविधियों से भरा पड़ा था। छोटे-छोटे वृक्ष पीछे दौड़ते हुये प्रतीत होते थे। अपने घरों से बाहर निकलते हुए बच्चे प्रसन्न दिखते थे।
जब वे हवाई अड्डे पर थे, तो उन्हें सुरक्षा जाँच से गुजरना पड़ा। कवयित्री अपनी माँ से कुछ गज़ दूर खड़ी थी। उसने अपनी माँ को फिर से देखा। माँ के विवर्ण, निर्जीव तथा पीले चेहरे को देखकर वह पुनः दुःखी हो गई। उसका चेहरा उस बीतती हुई शरद ऋतु के विवर्ण चन्द्रमा की भाँति दिखाई देता था, जिसकी चमक तथा शक्ति चुक गई हो। इसने कवयित्री के हृदय में पुरानी जानी-पहचानी टीस (पीड़ा) जागृत कर दी। उसके बचपन के भय ने उसे फिर से जकड़ लिया। किन्तु उसने स्वयं को नियन्त्रित किया। वह सामान्य दिखने लगी। उसे अलविदा कहते समय उसने अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेर ली थी। वह अपनी वृद्धा अम्मा से फिर से मिलने की कामना करती थी।
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